महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 114 श्लोक 16-19

चतुर्दशाधिकशततम (114) अध्याय: अनुशासनपर्व (दानधर्म पर्व)

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महाभारत: अनुशासन पर्व: चतुर्दशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 16-19 का हिन्दी अनुवाद


दूसरों के धन-धान्‍य को नष्‍ट करने वाले तथा मांस-भक्षण की स्‍तुति-प्रशंसा करने वाले सदा ही स्वर्ग से बहिष्‍कृत होते हैं। जो मांस के रस में होने वाली आसक्ति से वभिभूत होकर उसी अभीष्‍ट फल मांस की अभिलाषा रखते हैं तथा उसके बारंबार गुण गाते हैं, उन्‍हें ऐसी दुर्गति प्राप्‍त होती है, जो कभी चिन्‍तन में नहीं आयी है। जिसका वाणी द्वारा कहीं निर्देश नहीं किया गया है तथा जो कभी मन की कल्‍पनाओं में भी नहीं आयी है।

जो मृत्यु के पश्चात चि‍ता पर जला देने से भस्‍म हो जाता है अथवा किसी हिंसक प्राणी का खाद्य बनकर उसकी विष्‍ठा के रूप में परिणत हो जाता है, या यों ही फेंक देने से जिसमें कीड़े पड़ जाते हैं- इन तीनों में से यह एक-न-एक परिणाम जिसके लिये सुनिश्चत है, उस शरीर को विद्वान पुरुष दूसरों को पीड़ा देकर उसके मांस से कैसे पोषण कर सकता है? मांस की प्रशंसा भी पापमय कर्मफल से सम्‍बन्‍ध कर देती है।

उशीनर, शिबि आदि बहुत-से श्रेष्‍ठ पुरुष दूसरों की रक्षा के लिये अपने प्राण देकर, अपने मांस से दूसरों के मांस की रक्षा करके स्वर्गलोक में गये हैं।

महाराज! इस प्रकार चार उपायों से जिसका पालन होता है, उस अहिंसा धर्म का तुम्‍हारे लिये प्रतिपादन किया गया। यह सम्‍पूर्ण धर्मों में ओतप्रोत है।


इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासन पर्व के अंतर्गत दानधर्म पर्व में मांस के परित्याग का उपदेश विषयक एक सौ चौदहवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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