महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 111 श्लोक 76-95

एकादशाधिकशततम (111) अध्याय: अनुशासनपर्व (दानधर्म पर्व)

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महाभारत: अनुशासन पर्व: एकादशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 76-95 का हिन्दी अनुवाद


नरेश्‍वर! जो पापात्मा मोहवश भाई की स्त्री के साथ बलात्कार करता है, वह एक वर्ष तक कोयल की योनि में पड़ा रहता है। जो कामना की पूर्ति के लिये मित्र, गुरु और राजा की स्त्री का सतीत्व भंग करता है, वह मरने के बाद सूअर होता है। पांच वर्ष तक सूअर रहकर दस वर्ष भेड़िया, पांच वर्ष बिलाव, दस वर्ष मुर्गा, तीन महीने चींटी और एक महीने कीड़े की योनि में रहता है। इन सभी योनियों में चक्कर लगाने के बाद वह पुनः कीड़े की योनि में जन्म लेता है। उस कीट योनि में वह चौदह महीनों तक जीवन धारण करता है। तदनन्तर पापक्षय करके वह पुनः मनुष्य योनि में जन्म लेता है।

प्रभो! जो विवाह, यज्ञ अथवा दान का अवसर आने पर मोहवश उसमें विघ्न डालता है, वह भी मरने के बाद कीड़ा ही होता है। भारत! वह कीट पंद्रह वर्षों तक जीवित रहता है। फिर पापों का क्षय करके वह मनुष्य योनि में जन्म लेता है। राजन! जो पहले एक व्यक्ति को कन्यादान करके फिर दूसरे को उसी कन्या का दान करना चाहता है, वह भी मरने बाद कीड़े की योनि में जन्म लेता है। युधिष्ठिर! उस योनि में वह तेरह वर्षों तक जीवन धारण करता है। तदनन्तर पापक्षय के पश्चात वह पुनः मनुष्य योनि में उत्पन्न होता है।

जो देवकार्य अथवा पितृकार्य न करके बलिवैश्‍वदेव किये बिना ही अन्न ग्रहण करता है, वह मरने के बाद कौए की योनि में जन्म लेता है। सौ वर्षों तक कौए के शरीर में रहकर वह मुर्गा होता है। उसके बाद एक मास तक सर्प रहता है। तत्पश्‍चात् मनुष्य का जन्म पाता है। बड़ा भाई पिता के समान आदरणीय है, जो उसका अपमान करता है, उसे मृत्यु के बाद क्रौंच पक्षी की योनि में जन्म लेना पड़ता है। क्रौंच होकर वह एक वर्ष तक जीवित रहता है। उसके बाद चीरक जाति का पक्षी होता है और फिर मरने के बाद मनुष्य योनि में जन्म पाता है। शूद्र जाति का पुरुष ब्राह्मण जाति की स्त्री के साथ समागम करके देहत्याग के पश्‍चात पहले कीड़े की योनि में जन्म लेता है, फिर मरने के बाद सूअर होता है।

नरेश्‍वर! सूअर की योनि में जन्म लेते ही वह रोग से मर जाता है। पृथ्वीनाथ! तत्पश्‍चात् वह मूढ़ जीव उसी पापकर्म के कारण कुत्ता होता है। कुत्ता होने पर पापकर्म का भोग समाप्त करके वह मनुष्यों में जन्म लेता है। मनुष्य योनि में भी वह एक ही संतान पैदा करके मर जाता है और शेष पाप का फल भोगने के लिये चूहा होता है। राजन! कृतघ्न मनुष्य मरने के बाद यमराज के लोक में जाता है, जहाँ क्रोध में भरे हुए यमदूत उसके ऊपर बड़ी निर्दयता के साथ प्रहार करते हैं। भारत! वह दण्ड, मुद्गर और शूल की चोट खाकर दारुण अग्निकुम्भ (कुम्भीपाक), असिपत्रवन, तपी हुई भयंकर बालू, कांटों से भरी हुई शाल्मली आदि नरकों में कष्ट भोगता है। यमलोक में पहुँचकर इन ऊपर बताये हुए तथा और भी बहुत-से नरकों की भयंकर यातनाएँ भोगकर वह वहाँ यमदूतों द्वारा पीटा जाता है।

भरतश्रेष्ठ! इस प्रकार निर्दयी यमदूतों से पीड़ित हुआ कृतघ्न पुरुष पुनः संसारचक्र में आता और कीड़े की योनि में जन्म लेता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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