अष्टाधिकशततम (108) अध्याय: अनुशासनपर्व (दानधर्म पर्व)
महाभारत: अनुशासन पर्व: अष्टाधिकशततम अध्याय: श्लोक 17-21 का हिन्दी अनुवाद
पृथ्वी के कुछ भाग साधु पुरुषों के निवास से तथा स्वयं पृथ्वी और जल के तेज से अत्यन्त पवित्र माने गये हैं। इस प्रकार पृथ्वी पर और मन में भी अनेक पुण्यमय तीर्थ हैं। जो इन दोनों प्रकार के तीर्थों में स्नान करता है, वह शीघ्र ही परमात्म राप्तिरूप सिद्धि प्राप्त कर लेता है। जैसे क्रियाहीन बल अथवा बलरहित क्रिया इस जगत में कार्य का साधन नहीं कर सकती। बल और क्रिया दोनों के संयुक्त होने पर ही कार्य की सिद्धि होती है, इसी प्रकार शरीरशुद्धि और तीर्थशुद्धि से युक्त पुरुष ही पवित्र होकर परमात्मा प्राप्तिस्वरूप सिद्धि प्राप्त करता है। अतः दोनों प्रकार की शुद्धि ही उत्तम मानी गयी है।
इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासन पर्व के अंतर्गत दानधर्म पर्व में शुद्धि की जिज्ञासा नामक एक सौ आठवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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