षडधिकशततम (106) अध्याय: अनुशासनपर्व (दानधर्म पर्व)
महाभारत: अनुशासन पर्व: षडधिकशततम अध्याय: श्लोक 18-37 का हिन्दी अनुवाद
कुन्तीनन्दन! जो पौष मास को एक वक्त भोजन करके बिताता है, वह सौभाग्यशाली, दर्शनीय और यश का भागी होता है। जो माघ मास को नियमपूर्वक एक समय के भोजन से व्यतीत करता है, वह धनवान कुल में जन्म लेकर अपने कुटुम्बीजनों में महत्त्व को प्राप्त होता है। जो फाल्गुन मास को एक समय भोजन करके व्यतीत करता है, वह स्त्रियों को प्रिय होता है और वे उसके अधीन रहती हैं। जो नियमपूर्वक रहकर चैत्र मास को एक समय भोजन करके बिताता है, वह सुवर्ण, मणि और मोतियों से सम्पन्न महान कुल में जन्म लेता है। जो स्त्री अथवा पुरुष इन्द्रियसंयमपूर्वक एक समय भोजन करके वैशाख मास को पार करता है, वह सहजातीय बन्धु-बान्धवों में श्रेष्ठता को प्राप्त होता है। जो एक समय ही भोजन करके ज्येष्ठ मास को बिताता है, वह स्त्री हो या पुरुष, अनुपम श्रेष्ठ ऐश्वर्य को प्राप्त होता है। जो आषाढ़ मास में आलस्य छोड़कर एक समय भोजन करके रहता है, वह बहुत-से धन-धान्य और पुत्रों से सम्पन्न होता है। जो मन और इन्द्रियों को संयम में रखकर एक समय भोजन करते हुए श्रावण मास को बिताता है, वह विभिन्न तीर्थीं में स्नान करने के पुण्य फल से युक्त होता और अपने कुटुम्बीजनों की वृद्धि करता है। जो मनुष्य भाद्रपद में एक समय भोजन करके रहता है, वह गौधन से सम्पन्न, समृद्धिशील तथा अविचल समृद्धि का भागी होता है। जो आश्विन मास को एक समय भोजन करके बिताता है, वह पवित्र, नाना प्रकार के वाहनों से सम्पन्न तथा अनेक पुत्रों से युक्त होता है। जो मनुष्य कार्तिक मास में एक समय भोजन करता है, वह शूरवीर, अनेक भार्याओं से संयुक्त और कीर्तिमान होता है। पुरुषसिंह! इस प्रकार मैंने मासपर्यन्त एकभुक्त व्रत करने वाले मनुष्यों के लिये विभिन्न मासों के फल बताये हैं। पृथ्वीनाथ! अब तिथियों के जो नियम हैं, उन्हें भी सुन लो। भरतनन्दन! जो पन्द्रह-पन्द्रह दिन पर भोजन करता है, वह गौधन से सम्पन्न और बहुत-से पुत्र तथा स्त्रियों से युक्त होता है। जो बारह वर्षों तक प्रतिमास अनेक त्रिरात्र व्रत करता है, वह भगवान शिव के गणों का निष्कंटक एवं निर्मल आधिपत्य प्राप्त करता है। भरतश्रेष्ठ! प्रवृत्तिमार्ग का अनुसरण करने वाले पुरुष को ये सभी नियम बारह वर्षों तक पालन करने चाहिये। जो मनुष्य प्रतिदिन सबेरे और शाम को भोजन करता है, बीच में जल तक नहीं पीता तथा सदा अहिंसापरायण होकर नित्य अग्निहोत्र करता है, उसे छः वर्षों में सिद्धि प्राप्त हो जाती है। इसमें संशय नहीं है तथा नरेश्वर! वह अग्निष्टोम यज्ञ का फल पाता है। वह पुण्यात्मा एवं रजोगुणरहित पुरुष सहस्रों दिव्य रमणियों से भरे हुए अप्सराओं के महल में, जहाँ नृत्य और गीत ध्वनि गूंजती रहती हैं, रमण करता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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