महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 105 श्लोक 13-19

पन्चाधिकशततम (105) अध्याय: अनुशासनपर्व (दानधर्म पर्व)

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महाभारत: अनुशासन पर्व: पन्चाधिकशततम अध्याय: श्लोक 13-19 का हिन्दी अनुवाद


बड़ा भाई अच्छा काम करने वाला हो या बुरा, छोटे को उसका अपमान नहीं करना चाहिये। इसी तरह यदि स्त्री अथवा छोटे भाई बुरे रास्ते पर चल रहे हों तो श्रेष्ठ पुरुष को जिस तरह से भी उनकी भलाई हो, वही उपाय करना चाहिये। धर्मज्ञ पुरुषों का कहना है कि धर्म ही कल्याण का सर्वश्रेष्ठ साधन है।

गौरव में दस आचार्यों से बढ़कर उपाध्याय, दस उपाध्यायों से बढ़कर पिता और दस पिताओं से बढ़कर माता है। माता अपने गौरव से समूची पृथ्वी को भी तिरस्कृत कर देती है। अतः माता के समान दूसरा कोई गुरु नहीं है।

भरतनन्दन! माता का गौरव सबसे बढ़कर है, इसलिये लोग उसका विशेष आदर करते हैं। भारत! पिता की मृत्यु हो जाने पर बड़े भाई को पिता के समान समझना चाहिये। बड़े भाई को उचित है कि वह अपने छोटे भाइयों को जीविका प्रदान करे तथा उनका पालन-पोषण करे। छोटे भाइयों का भी कर्तव्य है कि वे सब-के-सब बड़े भाई के सामने नतमस्तक हों और उसकी इच्छा के अनुसार चलें। बड़े भाई को ही पिता मानकर उनके आश्रय में जीवन व्यतीत करें।

भारत! पिता और माता केवल शरीर की सृष्टि करते हैं, किंतु आचार्य के उपदेश से जो ज्ञानरूप नवीन जीवन प्राप्त होता है, वह सत्य, अजर और अमर है।

भरतश्रेष्ठ! बड़ी बहिन भी माता के समान है। इसी तरह बड़े भाई की पत्नी तथा बचपन में जिसका दूध पिया गया हो, वह धाय भी माता के समान है।


इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासन पर्व के अंतर्गत दानधर्म पर्व में बड़े और छोटे भाई का पारस्परिक बर्ताव नामक एक सौ पाँचवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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