चतुरधिकशततम (104) अध्याय: अनुशासनपर्व (दानधर्म पर्व)
महाभारत: अनुशासन पर्व: चतुरधिकशततम अध्याय: श्लोक 65-80 का हिन्दी अनुवाद
सिर पर तेल लगाने के बाद उसी हाथ से दूसरे अंगों का स्पर्श नहीं करना चाहिये और तिल के बने हुए पदार्थ नहीं खाने चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य की आयु क्षीण नहीं होती है। जूठे मुंह न पढ़ावे तथा उच्छिष्ट अवस्था में स्वयं भी कभी स्वाध्याय न करे। यदि दुर्गन्धयुक्त वायु चले, तब तो मन से स्वाध्याय का चिंतन भी नहीं करना चाहिये। प्राचीन इतिहास के जानकार लोग इस विषय में यमराज की गायी हुई गाथा सुनाया करते हैं। यमराज कहते हैं- ‘जो मनुष्य जूठे मुंह उठकर दौड़ता और स्वाध्याय करता है, मैं उसकी आयु नष्ट कर देता हूँ और उसकी संतानों को भी उससे छीन लेता हूँ। जो द्विज मोहवश अनध्याय के समय भी अध्ययन करता है, उसके वैदिक ज्ञान और आयु का भी नाश हो जाता है। अत: सावधान पुरुष को निषिद्ध समय में कभी वेदों का अध्ययन नहीं करना चाहिये। जो सूर्य, अग्नि, गौ तथा ब्राह्मणों की ओर मुंह करके पेशाब करते हैं और जो बीच रास्ते में मूतते हैं, वे सब गतायु हो जाते हैं। मल और मूत्र दोनों का त्याग दिन में उत्तराभिमुख होकर करे और रात में दक्षिणाभिमुख। ऐसा करने से आयु का नाश नहीं होता। जिसे दीर्घ काल तक जीवित रहने की इच्छा हो, वह ब्राह्मण, क्षत्रिय और सर्प- इन तीनों के दुर्वल होने पर भी इनको न छेड़े; क्योंकि ये सभी बड़े जहरीले होते हैं। क्रोध में भरा हुआ सांप जहाँ तक आंखों से देख पाता है, वहाँ तक धावा करके काटता है। क्षत्रिय भी कुपित होने पर अपनी शक्तिभर शत्रु को भस्म करने की चेष्टा करता है; परंतु ब्राह्मण जब कुपित होता है, तब वह अपनी दृष्टि और संकल्प से अपमान करने वाले पुरुष के सम्पूर्ण कुल को दग्ध कर डालता है; इसलिये समझदार मनुष्य को यत्नपूर्वक इन तीनों की सेवा करनी चाहिये। गुरु के साथ कभी हठ नहीं ठानना चाहिये। युधिष्ठिर! यदि गुरु अप्रसन्न हो तो उन्हें हर तरह से मान देकर मनाकर प्रसन्न करने की चेष्टा करनी चाहिये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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