चतुरधिकशततम (104) अध्याय: अनुशासनपर्व (दानधर्म पर्व)
महाभारत: अनुशासन पर्व: चतुरधिकशततम अध्याय: श्लोक 149-156 का हिन्दी अनुवाद
इसी विधि से विद्वान पुरुष पत्नी के साथ समागम करे। भाई-बन्धु, सम्बन्धी और मित्र इन सबका सब प्रकार से आदर करना चाहिये। अपनी शक्ति के अनुसार भाँति-भाँति की दक्षिणा वाले यज्ञों का अनुष्ठान करना चाहिये। नरेश्वर! तदनन्तर गार्हस्थ्य की अवधि समाप्त हो जाने पर वानप्रस्थ के नियमों का पालन करते हुए वन में निवास करना चाहिये। युधिष्ठिर! इस प्रकार मैंने तुमसे आयु की वृद्धि करने वाले नियमों का संक्षेप में वर्णन किया है। जो नियम बाकी रह गये हैं, उन्हें तुम तीनों वेदों के ज्ञान में बढ़े-चढ़े ब्राह्मण से पूछ कर जान लेना। सदाचार ही कल्याण का जनक और सदाचार ही कीर्ति का बढ़ाने वाला है। सदाचार से ही आयु की वृद्धि होती है और सदाचार ही बुरे लक्षणों का नाश करता है। सम्पूर्ण आगमों में सदाचार ही श्रेष्ठ बतलाया जाता है। सदाचार से धर्म की उत्पत्ति होती है और धर्म से आयु बढ़ती है। पूर्वकाल में सब वर्णों के लोगों पर दया करके ब्रह्मा जी ने यह सदाचार धर्म का उपदेश दिया था। यह यश, आयु और स्वर्ग की प्राप्ति कराने वाला तथा कल्याण का परम आधार है। नरेश्वर! जो प्रतिदिन इस प्रसंग सुनता और कहता है, वह सदाचार व्रत के प्रभाव से शुभ लोकों में जाता है।
इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासन पर्व के अंतर्गत दानधर्म पर्व में आयु बढ़ाने वाले साधनों का वर्णन विषयक एक सौ चारवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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