महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 102 श्लोक 41-56

द्वयधिकशततम (102) अध्याय: अनुशासनपर्व (दानधर्म पर्व)

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महाभारत: अनुशासन पर्व: द्वयधिकशततम अध्याय: श्लोक 41-56 का हिन्दी अनुवाद


धृतराष्‍ट्र ने कहा- 'मुने! जो धर्मात्‍मा राजा राजसूय यज्ञ में अभिषिक्‍त होते हैं, प्रजाजनों की रक्षा करते हैं तथा अश्वमेध यज्ञ के अवभृथ-स्‍नान में जिसके सारे अंग भीग जाते हैं, उन्‍हीं के लिये प्रजापति लोक है। धृतराष्‍ट्र वहाँ भी नहीं जायेगा।'

गौतम बोले- 'उससे परे जो पवित्र गंध से परिपूर्ण, रजोगुणरहित तथा शोकशून्‍य सनातन लोक प्रकाशित होते हैं, उन्‍हें गोलोक कहते हैं। उस दुर्लभ एवं दुर्धर्ष गोलोक में जाकर मैं तुमसे अपना हाथी वापस लूँगा।'

धृतराष्‍ट्र ने कहा- 'जो सहस्र गौओं का स्‍वामी होकर प्रतिवर्ष सौ गौओं का दान करता है, सौ गौओं का स्‍वामी होकर यथाशक्ति दस गौओं का दान करता है, जिसके पास दस ही गौएँ हैं, वह यदि उनमें से एक गाय का दान करता है, वह गौलोक में जाता है। जो ब्राह्मण ब्रह्मचर्य का पालन करते-करते ही बूढ़े हो जाते हैं, जो वेदवाणी की सदा रक्षा करते हैं तथा जो मनस्‍वी ब्राह्मण सदा तीर्थयात्रा में ही तत्‍पर रहते हैं, वे ही गौओं के निवास स्‍थान गोलोक में आनन्‍द भोगते हैं।

प्रभास, मानसरोवर, तीर्थ, त्रिपुष्‍कर नामक महान सरोवर पवित्र नैमिषतीर्थ, बाहुदा नदी, करतोया नदी, गया, गयशिर, स्‍थूल बालुकायुक्‍त विपाशा (व्‍यास), कृष्‍णा, गंगा, पंचनद, महाह्नद, गोमती, कौशिकी, पम्‍पासरोवर, सरस्‍वती, दृषद्वती और यमुना- इन तीर्थों में जो व्रतधारी महात्‍मा जाते हैं, वे ही दिव्‍यरूप धारण करके दिव्‍य मालाओं से अलंकृत हो गोलोक में जाते हैं और कल्‍याणमयस्‍वरूप तथा पवित्र सुगंध से व्‍याप्‍त होकर वहाँ निवास करते हैं। धृतराष्‍ट्र उस लोक में नहीं मिलेगा।'

गौतम बोले- 'जहाँ सर्दी का भय नहीं है, गर्मी का अणुमात्र भी भय नहीं है, जहाँ न भूख लगती है न प्‍यास, न ग्‍लानि प्राप्‍त होती है, न दु:ख-सुख, जहाँ न कोई द्वेष का पात्र है न प्रेम का, न कोई बन्‍धु है न शत्रु, जहाँ जरा-मृत्‍यु, पुण्‍य और पाप कुछ भी नहीं है, उस रजोगुण से रहित, समृद्धिशाली, बुद्धि और सत्‍वगुण से सम्‍पन्‍न तथा पुण्‍यमय ब्रह्मलोक में जाकर तुम्‍हें मुझे यह हाथी वापस देना पड़ेगा।'

धृतराष्‍ट्र ने कहा- 'महामुने! जो सब प्रकार की आसक्तियों से मुक्‍त है, जिन्‍होंने अपने मन को वश में कर लिया है, जो नियमपूर्वक व्रत का पालन करने वाले हैं, जो अध्‍यात्‍मज्ञान और योगसंबंधी आसनों से युक्‍त हैं, जो स्वर्गलोक के अधिकारी हो चुके हैं, ऐसे सात्त्विक पुरुष ही पुण्‍यमय ब्रह्मलोक में जाते हैं। वहाँ तुम्‍हें धृतराष्‍ट्र नहीं दिखाई दे सकता।'

गौतम बोले- 'जहाँ रथन्‍तर और बृहत्‍साम का गान किया जाता है, जहाँ या‍ज्ञिक पुरुष वेदी को कमल पुष्‍पों से आच्‍छादित करते हैं तथा जहाँ सोमपान करने वाला पुरुष दिव्‍य अश्‍वों द्वारा यात्रा करता है, वहाँ जाकर मैं तुमसे अपना हाथी वापस लूँगा। मैं जानता हूँ, आप राजा धृतराष्‍ट्र नहीं, वृत्रासुर का वध करने वाले शतक्रतु इन्‍द हैं और सम्‍पूर्ण जगत का निरीक्षण करने के लिये सब ओर घूम रहे हैं। मैंने मानसिक आवेश में आकर कदाचित वाणी द्वारा आपके प्रति कोई अपराध तो नहीं कर डाला?'

शतक्रतु बोले- 'मैं इन्‍द्र हूँ और आपके हाथी के अपहरण के कारण मानव प्रजा के दृष्टिपथ में निन्दित हो गया हूँ। अब मैं आपके चरणों में मस्‍तक झुकाता हूँ, आप मुझे कर्तव्‍य का उपदेश दें। आप जो-जो कहेंगे, वह सब करूँगा।'

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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