महरि सबै नेवज लै सैंतिति। स्याम छुवै कहुँ ताकौं डरपति।।
कान्हहिं कहति, इहाँ जनि आवै। लरिकनि कौं यह देव डरावै।।
स्याम रहे आँगनहिं डराई। मन-मन हँसत मातु-सुखदाई।।
मैया री मोहिं देव दिखैहै। इतनौ भोजन सब वह खैहै।।
यह सुनि खीभत है नँदरानी। बार बार सुत सौं बिरुभानी।।
ऐसी बात न कहौ कन्हाई। तू कत करत स्याम लँगराई।।
कर जोरति अपराध छमावति। बालक कौ यह दोष मिटावति।।
सूरदास प्रभु कौं नहिं जाने। हँसत चले मन मैं न रिसाने।।893।।