मन यह कहतिं देह बिसरायै।
यह धन तुमहीं कौं सँचि राख्यौ, इहिं लीजै सुख पायैं।।
जोबन-रूप नहीं तुम लायक, तुमकौं देति लजातिं।
ज्यौं बारिधि आगैं जल-किनुका, बिनय करतिं इहिं भाँति।।
अमृत सर आगैं मधु रंचक, मनहिं करति अनुमान।
सूर स्याम सोभा की सींवां, तिन पटतर को आन।।1590।।