मन मैं रह्यौ नाहिन ठौर।
नंदनंदन अछत कैसै, आनियै उर और।।
चलत चितवत दिवस जागत स्वप्न ओवत राति।
हृदय तै वह मदन मूरति, छिन न इत उत जाति।।
कहत कथा अनेक ऊधौ, लोक लोभ दिखाइ।
कह करौ मन प्रेमपूरन, घट न सिंधु समाइ।।
स्याम गात सरोज आनन, ललित मृदु मुख हास।
‘सूर’ इनकै दरस कारन, मरत लोचन प्यास।।3732।।