मन मृग वेध्यौ नैन बान सौ।
गूढ़ भाव को सैन अचानक, तकि ताक्यौ भृकुटी कमान सौ।।
प्रथम नाद कल घेरि निकट लै, मुरली सप्तक सुर बँधान सौ।
पाछै बक चितै, मधुरै हँसि, घात कियौ उलटे सुठान सौ।।
'सूर' सु मारकिया या तन की, घटति नहीं औषधी आन सौ।
ह्वैहै सुख तबही उरअंतर आलिंगन गिरिधर सुजान सौ।।1964।।