मन बस होत नाहिनै मेरै -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग नट



मन बस होत नाहिनै मेरै।
जिनि बातानि तै वह्यौ फिरते हों, सोई लै लै प्रेरें।
कैसें कहौं सुनौं जस तेरे, औरै आनि खचेरै।
तुम तो दोष, लगावन कौं सिर बैठे देखत नेरै।
कहा करौं, यह चरयौ बहुत दिन, अंकुस बिना मुकेरैं।
अब जरि सूरदास प्रभु आपनु, द्वार परयौ है तेरै।।206।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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