मन न रहै सखि स्याम बिना -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग देवसाख


मन न रहै सखि स्याम बिना।
अतिहीं चतुर सुजान जानमनिक, वा छवि पर मैं भई लिना।।
मन तौ चोरि लियौ पहिलै ही, झुरि झुरि कै ह्वै रही छिना।
अपनी दसा कहौ कासौ मैं, बन बन डोलौ रैनदिना।।
वै मोहन मन हरत सहजही, हरि लै ताकौ करत हिना।
'सूरदास' प्रभु रसिक रसीले, बहु नायक है नाउँ जिना।।1915।।

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