मन तोसौं किती कही समुझाइ -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग धनाश्री



            

मन तोसौं किती कही समुझाइ।
नंद-नँदन के चरन-कमल भजि, तजि पाखँड-चतुराइ।
सुख-संपति, दारा-सुत, हय-गय, छूट सबै समुदाइ।
छन-भंगुर यह सबै स्‍याम बिनु, अंत नाहि सँग जाइ।
जनमत-मरत बहूत जुग बीते, अजहूँ लाज न आइ।
सूरदास भगवंत-भजन बिनु, जैहै जनम गँवाइ।।317।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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