मनिमय आँगन नंद कैं -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सूहौ बिलावल



मनिमय आंगन नंद कैं, खेलत दोउ भैया।
गौर-स्याम जोरी बनी, बलराम कन्हैया।
लटकति ललित लटूरियाँ, मसि-बिंदु गोरोचन।
हरि-नख उर अति राजहीं , संतनि दुख मोचन।
संग-संग जसुमति-रोहिनी, हितकारिनि मैया
चुटकी देहिं नचावहीं, सुत जानि नन्हैया।
नील-पीत पट ओढ़नी देखत जिय भावै।
बाल-बिनोद अनंद सौं, सूरज जन गावै।।116।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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