मनिमय आंगन नंद कैं, खेलत दोउ भैया।
गौर-स्याम जोरी बनी, बलराम कन्हैया।
लटकति ललित लटूरियाँ, मसि-बिंदु गोरोचन।
हरि-नख उर अति राजहीं , संतनि दुख मोचन।
संग-संग जसुमति-रोहिनी, हितकारिनि मैया
चुटकी देहिं नचावहीं, सुत जानि नन्हैया।
नील-पीत पट ओढ़नी देखत जिय भावै।
बाल-बिनोद अनंद सौं, सूरज जन गावै।।116।।