मनावति हारि रही हौ माई -सूरदास

सूरसागर

2.परिशिष्ट

भ्रमर-गीत

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मनावति हारि रही हौ माई।
तू चित तै पट होति न राधे हौ तोहि लेन पठाई।
राजकुमारि होइ तौ जानै घर की होइ बढ़ाई।
कमलनैन कौ जानि महातम अपनी राखि बड़ाई।।
टेढ़ी भौंह चली करि दूती तिरछै हाथ नचाई।
'सूरदास' प्रभु जौ करौ दुलहिनि तौ बाबा की जाई।। 62 ।।

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