मधुर-सुमधुर, मधुर उससे भी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा माधव स्वरूप माधुरी

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राग भैरव - ताल कहरवा


मधुर-सुमधुर, मधुर उससे भी, परम मधुर, उससे भी और-
मधुर-मधुरतम, नित्य-निरन्तर वर्द्धनशील मधुर सब ठौर॥
अंग-‌अंग माधुर्य-सुपूरित, मधुर अमृतमय पारावार।
अखिल विश्व-सौन्दर्य, मधुर माधुर्य सकल का मूलाधार॥
कनक-कमल-कमनीय कलेवर, सहज सौरभित मधुर अपार।
नेत्रद्वय, मुख, नाभि, पदद्वय, हस्तद्वय द्युति-सुषमागार॥
विविध वर्ण, सौरभ विचित्र युत अष्ट कमल ये अति अभिराम।
यों विकसित नव-कमल मिलितसे, अनुपम शोभा हु‌ई ललाम॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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