मधुवन लोगनि को पतियाइ।
मुख औरै अंतरगति औरै, पतियाँ लिखि पठवत जु बनाइ।।
ज्यौ कोइलसुत काग जियावै, भाव भगति भोजन जु खवाइ।
कुहुकि कुहुकि आऐ बसत रितु, अंत मिलै अपने कुल जाइ।।
ज्यौ मधुकर अंबुजरस चाख्यौ, बहुरि न बूझे बातै आइ।
‘सूर’ जहाँ लगि स्याम गात है, तिनसौं कीजे कहा सगाइ।।3591।।