मधुकर रह्यौ जोग लौ नातौ।
कतहि बकत है काम काज बिनु, होहि न ह्याँ तैं हातौ।।
जब मिलि-मिलि मधुपान करत है, तब तू कहि धौ कहा तौ।
अब आयौ निरगुन उपदेसन, जो नहि हमहि सुहातौ।।
काँचे गुन करि तृनहिं लपेटत, लै बारिज कौ ताँतौ।
मेरै जान गह्यौ चाहत हौ, फेरि कि मैगल मातौ।।
यह लै देहु ‘सूर’ के प्रभु कौ, आयौ जोग जहाँ तौ।
जब चहिहै तब माँगि पठैहै, जो कोउ आवत जातौ।।3706।।