मधुकर यह सुख तुमतै दूरि।
देख्यौ, सुन्यौ न परस्यौ रचक, उडिहु न लागी धूरि।।
अब तौ जोग सिखावन आए, तजि हरि जीवन मूरि।
चितवनि मद हँसनि, गति परसनि, हृदय रही भरपूरि।।
मो मन जो घट होत तिहारे, मुक्ति चलै पग चूरि।
मथुरा जाइ ‘सूर’ प्रभु पूछहि, मरिहौ तबहिं विसूरि।।4048।।