मधुकर भली करी तुम आए।
वै बातै कहि कहि या दुख मैं, ब्रज के लोग हँसाए।।
मोर मुकुट मुरली पीताबर, पठवहु सौज हमारी।
आपुन जटाजूट, मुद्रा धरि, लीजै भस्म अधारी।।
कौन काज वृंदावन कौ सुख, दही भात की छाक।
अब वै स्याम कूबरी दोऊ, वने के ही ताक।।
वै प्रभु बड़े सखा तुम उनके, जिनकै सुगम अनीति।
या जमुना जल कौ सुभाव यह, ‘सूर’ विरह की प्रीति।।3886।।