मधुकर देखि स्याम तन तेरौ।
या मुख की सुनि मीठी बातैं, डरपत है मन मेरौ।।
काहै चरन छुवत रस लपट, बरजत ही वे काज।
परसत गात स्रवन कुच कुकुम, यहऊ करि कछु लाज।।
बुधि बिबेक बल बचन चातुरी, सरबस चितै चुरायौ।
ऐसौ धौ उन कहा बिचारयौ, जा लगि तू ब्रज आयौ।।
अब कहि किहि आसा गावत हौ, हम आगै यह गीत।
‘सूर’ इते सौ बार कहा है, जो पै त्रिगुन अतीत।।3757।।