मधुकर तुम हौ स्याम सखाई -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग मलार


मधुकर तुम हौ स्याम सखाई।
पा लागौं यह दोष बकसियौ, सनमुख करति ढिठाई।।
कौनै रंक संपदा बिलसी, सोवत सपनै पाई।
किहिं सोने की उड़त चिरैया, डोरा बाँधि उड़ाई।।
धाम धुवाँ के कहौ कौन के, कौनै धाम उठाई।
किहिं अकास तै तोरि तरैया, आनि धरे धरनाई।।
ओलनि की माला कर अपनै, कौनै गूँथि बनाई।
किहिं कागद की तरनी कीन्ही, कौन तरयौ सर जाई।।
कौनै अबला नैन मूँदि कै, जोग समाधि लगाई।
इहिं उर आन रूप देखन कौ, आगि उठी अनखाई।।
सुनि ऊधौ तुम फिरि फिरि गावत, यामैं कौन बड़ाई।
'सूरदास' प्रभु ब्रज जुवतिनि कौ, प्रेम कह्यौ नहिं जाई।।3968।।

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