मधुकर जनि मधुबन तन देखौ।
कछुक दिवस औरौ ब्रज बसिकै, जनम सुफल करि लेखौ।।
कहा जाइ लैहौ ह्याँ, जामैं राज काज की बात।
बाल कुमार किसोर निरखि ह्याँ, घर घर माखन खात।।
तुम निरगुन नित कहत निरंतर, निगम बखानत नीति।
प्रगट रूप मद मत्त नैन क्यौ, छाँडै दरसन प्रीति।।
सिव विरंचि सनकादिक मुनि जन, सुनियत, जाकौ ध्यावत।
‘सूर’ सोइ प्रभु ग्वाल सुतनि सँग, गोधन बृंद चरावत।।3907।।