मधुकर कौन मनायौ मानै।
अविनासी अति अगम तुम्हारौ, कहा प्रीति रस जानै।।
सिखवहु जाइ समाधि जोग रस, जे सब लोग सयाने।
हम अपनै ब्रज ऐसहिं रहिहै, विरह बाइ बौराने।।
जागत सोवत सपन रैन दिन, उहै रूप परवाने।
बालमुकुद किसोरी लीला, सोभा सिंधु समाने।।
जिनके तन मन प्रान ‘सूर’ सुनि, मृदु मुसकानि बिकाने।
परी जु पयनिधि अल्प बूँद जल, सु पनि कौन पहिचानै।।3840।।