मधुकर की संगति तै जनियत, बस ऐन चितयौ।
कह पूछनि बिनु समुझे सुदरि, सोइ मुख कमल गह्यौ।।
व्याध नाद कह जानै हिरनी, कर सायल की नारि।
आलापहु गाबहु कै नाच्हु, दाबै परै लै मारि।।
जुबा कियौ व्रज मंडल यह हरि, जीति अवधि लौ खेलि।
हाथ परयौ सु गयौ चपते तिय, कहा सदन मैं हेलि।।
सुनि सतकर्म कियौ मातुल बधि, मदिरा मदन प्रमोद।
‘सूर’ स्याम एते औगुन मैं, निरगुन तै अति स्वाद।। 166 ।।