मधुकर कहाँ पढ़ी यह नीति।
लोक वेद सब ग्रंथ रहित यह, कथा कहत विपरीति।।
जनम भूमि ब्रज सखी राधिका, केहिं अपराध तजी।
अति कुलीन गुन रूप अमित सुख, दासी जाइ भजी।।
जोग समाधि वेदगुनि मारग, क्यौ समुझै जु गँवारि।
जो पै गुन अतीत व्यापक है, तो हम काहैं न्यारि।।
रहि अलि ढीठ कपट स्वारथ हित, तजि बहु बचन बिसेषि।
मन क्रम बचन बचतिं इहिं नातै, ‘सूर’ स्याम तन देखि।।3509।।