मधुकर आवत मन पछितायौ -सूरदास

सूरसागर

1.परिशिष्ट

भ्रमर-गीत

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मधुकर आवत मन पछितायौ।
चेरी सुनी कस की कुबिजा, करति साँति कौ दायौ।।
चंदन घसि लै चली नृपति कौ, मारग मै हरि पायौ।
अब क्यौ कृप्या परखिंह हमकौ पढि टोना सिर नायौ।।
हौ निसि वासर पूजति तुमकौ, चंदन तुम्हैं चढ़ाऊँ।
बैरी मित्र बसत हिरदै मे, तातै तुम्हैं लगाऊँ।।
तीनि ठौर तै टेढ़ी कुबिजा, परसि सुदरी कीन्ही।
ठाकुर ह्वै दासी तन परस्यौ, सुधि बुधि मति हरि लीन्ही।।
लज्जा मान देखि जुवती कौ, कृप्या कटाच्छन हेरे।
कुबिजा उलटि पीत पट पकरयौ, चलौ निकट घर मेरे।।
यह हम सुनी देखि मिलि दोऊ, मोहन मुरि मुसकाने।
ता दिन तै गोपिनि तजि कान्हा, कुबिजा हाथ बिकाने।।
जीवै लाख करोरनि कुबिजा, कलियुग चलै कहानी।
ज्यों अँधरनि मै कानौ राजा, त्यौ कुबिजा पटरानी।।
हमरै दृढ़ व्रत नंदनँदन सौ, निरगुन सरौ न जानै।
परौ छठी मै छार ‘सूर’ प्रभु तजिकै आनहिं मानै।। 174 ।।

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