मधुकर-कृष्ण, मनोहर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्री कृष्ण के प्रेमोद्गार

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राग जंगला - ताल कहरवा


मधुकर-कृष्ण, मनोहर, चिक्कण चिकुर सुशोभित वेणि अनूप।
सुमन सुगन्धित गुँथे मनोरम, मणिमय मुकुट, विलक्षण रूप॥
नित नव अनुरागिनि, बड़भागिनि, भूषण विविध विराजित अंग।
वक्ष उतुंग कञ्चुकी-शोभित, शीश चूनरी मोहन रङ्ग॥
चिबुक मनोहर, कम्बु-कण्ठ, कमनीय कुसुम-मुक्ता-मणिहार।-तेरी०।

मन्द उदर रेखात्रय-राजित, नाभि गभीर-मधुर-‌अभिराम।
कृश कटि सुन्दर किन्कणि शोभित, कर-पद मेंहदी रची सुठाम॥
सकल कला-निधि, गुण-निधि, गुण-वर्णन-‌अक्षम श्रुति-शारद-शेष।
मन्मथ-मन्मथ-मानस-मन्थिनि सदा सुहागिनि सुन्दर वेष॥
नित्य निकुजेश्वरि नव-कुञ्जविहारिणि करती नित्य विहार।-तेरी०।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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