मथुरा जाति हौं बेचन दहियौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग धनाश्री



मथुरा जाति हौं बेचन दहियौ।
मेरे घर कौ द्वार, सखी री, तबलौं देखति रहियौ।
दधि-माखन द्वै माट अछूते तोहिं सौंपति हौं सहियौ।
और नहीं या व्रज मैं कोऊ, नंद-सुवन सखि लहियौ।
ये सब बचन सुने मन-मोहन, वहै राह मन गहियौ।
सूर पौरि लौं गई न ग्‍वालिनि, कूदि परे दै धहियौ।।313।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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