भोरहु भए प्रगट स्यामा जू तउ रजनी मन आनति।
पिय-अँग-रुचि लोचनपथ पूरति निसि अँधियारी मानति।।
अलिगन स्रोनि रटत नीरज पर सुनि रसना रव ठानति।
पूरब कृत करनी माधव सौ आनंद सैन सुनावति।।
'सूरदास' सहचरि सब प्रमुदित विहद जतन करिं भानति।
दिन पुनि प्रगटिं बिनोद रजनि के तरनि उदोत न मानति।। 74 ।।