भुवन चतुर्दस राज सकल 'सूरदास' नर मुनि देवा ।
कर जोरे ससि सूर पवन पानी करै सेवा ।।
अबहि ओर की और होति कछु लागै बारा ।
तातै पाती लिखी तुमहि मै प्रान अधारा ।।
कै जदुपति लै आवहु, करौ प्रान लगि घाउ ।
बाजै सखहि जानि हौ, आए जादवराउ ।।
कटै भूख औ नीद जीव हौ जानति नाही ।
अनदेखे वै नैन लगे लोचन पथ माही ।।
जो माँगौ सो देउँ लेहु माधौ सँग आए ।
कोटि जज्ञ फल होइ पिता उन दरसन पाए ।।
रोइ रुकमिनी यौ कह्यौ धरौ पानि मैं माथ ।
यह पाती लै दीजियौ, प्राननाथ कै हाथ ।।