- महाभारत सभा पर्व के ‘दिग्विजय पर्व’ के अंतर्गत अध्याय 30 के अनुसार भीम का अनेक राजाओं से भारी धन-सम्पति जीतकर इन्द्रप्रस्थ लौटने का वर्णन इस प्रकार है[1]-
वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! तदनन्तर शत्रुओं का दमन करने वाले भीमसेन ने कुमार देश के राजा श्रेणिमान तथा कोसलराज वृहद्वल को परास्त किया। इसके बाद अयोध्या के धर्मज्ञ नरेश महाबली दीर्घयज्ञ को पाण्डव श्रेष्ठ भीम ने कोमलतापूर्ण बर्ताव से वश में कर लिया। तत्पश्चात शक्तिशाली पाण्डुकुमार ने गोपालकक्ष और उत्तर कोसल देश को जीतकर मल्लराष्ट्र के अधिपति पार्थिव को अपापे अधीन कर लिया। इसके बाद हिमालय के पास जाकर बलवान भीम ने सारे जलोद्भव देश पर थोड़े ही समय में अधिकार प्राप्त कर लिया। इस प्रकार भरतवश भूषण भीमसेन ने अनेक देश जीते और भल्लाट के समीपवर्ती देशों तथा शुक्तिमान पर्वत पर भी विजय प्राप्त की। बलवानों में श्रेष्ठ महापराक्रमी तथा भयंकर पुरुषार्थ प्रकट करने वाले पाण्डुकुमार महाबाहु भीमसेन ने समर में पीठ न दिखाने वाले काशिराज सुबाहु को बलपर्वूक हराया। इसके बाद पाण्डु पुत्र भीम ने सुपार्श्व के निकट राजराजेश्वर क्रथ को, जो युद्ध में बलपूर्वक उनका सामना कर रहे थे, हरा दिया। तत्पश्चात महातेजस्वी कुन्तीकुमार ने मत्स्य, महाबली मलद, अनघ और अभय नामक देशों को जीकर पशु भूमि (पशुपतिनाथ के निकटवर्ती स्थान नेपाल) को भी सब ओर से जी लिया। वहाँ से लौटकर महाबाहु भीम ने मदधार पर्वत और सोमधेय निवासियों को परास्त किया। इसके बाद बलवान भीम ने उत्तराभिमुख यात्रा की और वत्सभूमि पर बलपूर्वक अधिकार जमा लिया। फिर क्रमश: भोगों के स्वामी, निषादों के अधिपति तथा मणिमान आदि बहुत से भूपालों को अपने धिकार में कर लिया। तदनन्तर दक्षिण मल्लदेश तथा भोगवान पर्वत को भीमसेन ने अधिक प्रयास किये बिना ही वेग पूर्वक जीत लिया।
शर्मक और वर्मकों को उन्होंने समझा बुझाकर ही जीत लिया। विदेह देश के राजा जनक को भी पुरुषसिंह भीम ने अधिक उग्र प्रयास किये बिना ही परास्त किया। फिर शकों और बर्बरों पर छल से विजय प्राप्त कर ली। विदेह देश में ही ठहरकर कुन्तीकुमार भीम ने इन्द्र पर्व तके निकटवर्ती सात किरात राजाओं को जीत लिया। इसके बाद सुह्य और प्रसुह्य देश के राजाओं को, जिनके पक्ष में बहुत लोग थे, अत्यन्त पराक्रमी और बलवान कुन्तीकुमार भीम युद्ध में परास्त करके मगध देश को चल दिये। मार्ग में दण्ड-दण्डधार तथा अन्य राजाओं को जीतकर उन सबके साथ वे गिरिव्रज नगर में आये। वहाँ जरासंधकुमार सहदेव को सान्त्वना देकर उसे कर देने की शर्त पर उसी राज्य पर प्रतिष्ठित कर दिया और उन सबके साथ बलवान भीम ने कर्ण पर चढ़ाई की। पाण्डव श्रेष्ठ भीम ने पृथ्वी को कम्पित सी करते हुए चतुरंगिणी सेना साथ ले शत्रुघाती कर्ण के साथ युद्ध छेड़ दिया। भारत! उस युद्ध में कर्ण को परास्त करके अपने वश में कर लेने के पश्चात बलवान भीम ने पर्वतीय राजाओं पर विजय प्राप्त की। तदनन्तर पाण्डुनन्दन भीमसेन ने मोदागिरि के अत्यन्त बलिष्ठ राजा को अपनी भुजाओं के बल से महासमर में मार गिराया। महाराज! तत्पश्चात भीमसेन पुण्ड्रक देश के अधिपति महाबली वीर राजा वासुदेव के साथ, जो कोसी नदी के कछार में रहने वाले तथा महान तेजस्वी थे, जो भिड़े। वे दोनों ही बलवान एवं दु:सह पराक्रम वाले वीर थे। भीम ने विपक्षी वासुदेव (पौण्ड्रक) को युद्ध में हराकर वंगदेश के राजा पर आक्रमण किया।[1]
तदनन्तर भरत श्रेष्ठ भीमसेन ने समुद्र सेन, भूपाल, चन्द्रसेन, राजा ताम्रलिप्त, कर्वटाधिपति तथा सुझ नरेश को जीतकर समुद्र के तट पर निवास करने वाले समस्त म्लेच्छों को भी अपने अधीन कर लिया। इस प्रकार पवन पुत्र बलावान भीम ने बहुत से देशों पर अधिकार प्राप्त करके उन सबसे धन लेकर लौहित्य देश की यात्रा की। वहाँ उन्होंने समुद्र के टापुओं में रहने वाले बहुत से म्लेच्छ राजाओं को जीतकर उनसे कर के रूप में भाँति-भाँति के रत्न वसूल किये। इतना ही नहीं, उन राजाओं ने भीमसेन को चन्दन, अगर, वस्त्र, मणि, मोती, कम्बल, सोना, चाँदी और बहुमूल्य मूँगे भेंट किये। कुन्ती और पाण्डु के पुत्र महात्मा भीमसेन के पास उन्होंने करोड़ों की संख्या में धन रत्नों की वर्षा की (कर के रूप में धन रत्न प्रदान किये)। तदनन्तर भयानक पराक्रमी भीम ने इन्द्रप्रस्थ में आकर वह सारा धन धर्मराज को सौंप दिया।[2]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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