भावत हरि कौ बाल-बिनोद।
स्याम-राम-मुख निरखि-निरखि, सुख मुदित रोहिनी, जननि जसोद।
आँगन-पंक-राग तन सोभित, चल, नूपुर-धुनि सुनि मन मोद।
परम सनेह बढ़ावत मातनि, रबकि-रबकि हरि बैठत गोद।
आनँद-कंद, सकल सुख-दायक, निसि-दिन रहत केलि-रस ओद।
सूरदास प्रभु अंबुज-लोचन, फिरि-फिरि चितवत ब्रज-जन-कोद।।119।।