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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
6. भीष्म पर्व
अध्याय : 10
व्रात्यों के रीति रिवाजों का वर्णन करते हुए उनके रथ को ‘फलकास्तीर्ण’ (फट्टों से जड़ा हुआ) और विपथ (ऊबड़-खाबड़ रास्तों में जाने वाला) कहा है।[1] यह लोग लूट-मार करके भाग जाते थे।[2] रथोरग इसी प्रकार के सरहदी लोग थे। कबायली का प्राचीन पारिभाषिक शब्द ग्रामणीय था, जिसका पाणिनि ने उल्लेख किया है[3] और सभापर्व में भी जिनका नाम आया है।[4] इसी प्रसंग में ‘दश मालिक’ नामक जनपद भी ध्यान देने योग्य है। यह सम्भवतः अफ़ग़ानिस्तान का उत्तरी-पूर्वी और मध्य भाग था, जो इस समय कोहिस्तान कहलाता है। सभापर्व में लोहित प्रदेश के दशमंडल राज्यों का उल्लेख है।[5] ये ही लोहित या रोह[6] के दसमालिक राज्य ज्ञात होते हैं। दशमंडल को ही दस मालिक कहा गया है। इस सूची में शक (शकस्थान, वर्तमान सीस्तान), यवन (सम्भवतः यह भी बल्ख के पास बसे हुए यूनानी), पह्लव (उत्तर-पूर्वी ईरान का पार्थिया प्रदेश), पारसीक (ईरान का दक्षिणी प्रदेश), पारतक (बलूचिस्तान का हिंगुल प्रदेश), रमठ (गजनी का इलाका), वनायु (सीमाप्रान्त की बानाधाटी) नाम भी पश्चिमोत्तर भारत के भूगोल की सूक्ष्म जानकारी सूचित करते हैं। खशों का स्थान सम्भवतः काश्मीर में था। तुखार मध्य एशिया की एक जाति थी, जिसका स्थान बदलता रहा। कुषाण जाति भारत में तुषार नाम से प्रसिद्ध थी। काश्मीर के उत्तर-पश्चिम का भाग दरद् (वर्तमान गिलगिल का दरदिस्तान प्रदेश, जहाँ के निवासी अब भी दरदी कहलाते हैं) और ठेठ उत्तरी भाग हंसमार्ग (वर्तमान हुंजा) नामों से प्रसिद्ध था। हंसमार्ग नाम पड़ने का हेतु यह है कि यहाँ के पहाड़ी दर्रों से हंस जाति के लाखों पक्षी भारत से मध्य एशिया और साइबेरिया की ओर प्रति वर्ष उड़ कर जाते थे। आज भी यह सिलसिला जारी है। ये पक्षी गर्मी के आरम्भ में उत्तर की यात्रा करते हैं और जाड़े के आरम्भ में लौटते हैं। इस प्रकार का दूसरा हंसमार्ग अल्मोड़ा से आगे ‘लीपूलेख’ का दर्रा है, जिसे प्राचीन भारतीय क्रौन्व द्वार कहते थे और जहाँ से होते हुए हंस जाति के पक्षी भारत से कैलास-मानसरोवर की यात्रा करते हैं और फिर उसी प्रकार लौट आते हैं। इस प्रकार क्रौन्व मार्ग और हंस मार्ग ये दोनों भारतीय भूगोल की सुविदित परिभाषाएं हैं। इस सूची में चीन का नाम भी है, जो काश्मीर की सीमा के उत्तर मध्य एशिया का कोई भाग रहा होगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ कात्यायनश्रौतसूत्र, 22। 4। 16
- ↑ प्रसेधमाना यन्ति, लाट्यायनश्रौतसूत्र, 8। 6। 7
- ↑ अष्टा. 5। 2। 78
- ↑ सिन्धुकूलाश्रिता ये च ग्रामणीया महाबलाः, सभा. 29। 8
- ↑ सभा. 24। 16
- ↑ अफ़ग़ानिस्तान का मध्यकालीन नाम, जहाँ के रोहेले प्रसद्धि हैं
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