भविष्य पुराण

भविष्य पुराण, गीताप्रेस गोरखपुर का आवरण पृष्ठ

सूर्योपासना और उसके महत्त्व का जैसा व्यापक वर्णन 'भविष्य पुराण' में प्राप्त होता है। वैसा किसी अन्य पुराण में नहीं उपलब्ध होता। इसलिए इस पुराण को 'सौर ग्रंथ' भी कहते हैं। यह ग्रंथ बहुत अधिक प्राचीन नहीं है। इस पुराण में दो हज़ार वर्ष का अत्यन्त सटीक विवरण प्राप्त होता है। 'भविष्य पुराण' के अनुसार, इसके श्लोकों की संख्या पचास हज़ार के लगभग होनी चाहिए, परन्तु वर्तमान में कुल अट्ठाईस हज़ार श्लोक ही उपलब्ध हैं। इस पुराण को चार खण्डों में विभाजित किया गया है- ब्राह्म पर्व, मध्यम पर्व, प्रतिसर्ग पर्व और उत्तर पर्व। 'भविष्य पुराण' की विषय वस्तु में सूर्य की महिमा, उनके परम तेजस्वी स्वरूप, उनके परिवार, उनकी उपासना पद्धति, विविध व्रत-उपवास, उनको करने की विधि, सामुद्रिक शास्त्र, स्त्री-पुरुष के शारीरिक लक्षण, रत्नों एवं मणियों की परीक्षा का विधान, विभिन्न प्रकार के स्तोत्र, अनेक सप्रकार की औषधियों का वर्णन, वर्प विद्या का विशद् ज्ञान, विविध राजवंशों का उल्लेख, विविध भारतीय संस्कार, तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था, शिक्षा-प्रणाली तथा वास्तु शिल्प आदि शामिल हैं जिन पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है।



संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः