भवन पति तुम घरि आज्‍यो हो -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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विरह निवेदन

राग देस


भवन पति तुम घरि आज्‍यो हो ।
बिथा लगी तन माहिंने (म्‍हारी), तपत बुझाज्‍यो हो ।। टेक ।।
रोवत रोवत डोलताँ, सब रैण बिहावै हो ।
भूख गई निदरा गई, पापी जीव न जावै हो ।
दुखिया कूँ सुखिया करो, मोहि दरसण दीजै हो ।
मीराँ व्‍याकुल बिरहणी, अब बिलम न कीजै हो ।।96।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भवन पति = घर के मालिक, स्वामी। घरि = घर पर। मांहिने = भीतर। तपत = ज्वाला। डोलताँ = डोलते फिरते। बिहावै = बीत जाती है। निदरा = नींद।

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