भरोसौ कान्ह कौ है मोहि।
सुनि जसुदा काली के भय तै, तू जनि ब्याकुल होहिं।।
प्रथम पूतना आई कपट करि, अस्तन विष जु निचोहि।
मारि, डारि दीन्ही दिन द्वे के, प्रकट दिखाई तोहि।।
अघ, बक, धेनु, तृनाव्रत, केसी कौ बल देख्यौ जोहि।
सात दिवस गिरिबर कर राख्यौ, गयौ इंद्र मद छोहि।।
सुनिसुनि कथा नंदनंदन की, मन आयौ अविरोहि।
'सूरदास' प्रभु जो कछु करिये, आवत है सब सोहि।। 31 ।।