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कंस का प्रयत्न
‘पिता को पता नहीं लगना चाहिये कि तुम्हारा देवकी से कोई द्वेष है।’ कंस ने कहा- ‘तुम दोनों प्रतिदिन नियम से वसुदेव के अन्त:पुर में जाओ और देवकी से मिलती रहो। देवकी को तथा वहाँ अन्त:पुर की सभी स्त्रियों को यही प्रतीत होना चाहिये कि तुम्हें देवकी से पहिले के समान ही प्रेम है। तुम्हें मेरे द्वारा देवकी का जो अपमान हुआ है, उसका बहुत दु:ख है। देवकी के लिए उपयुक्त उपहार बार-बार ले जाना मत भूलो।’ ‘आप अब भी उसे बहिन मानते हैं?’ चिढकर अस्ति ने कहा। ‘पहिले पूरी बात सुन लो’, कंस गम्भीर बना रहा-वसुदेव देवकी को लेकर कहीं भाग गये तो समस्या बहुत कठिन हो जायगी। उनके मन का आतंक दूर होना चाहिए। देवकी को या किसी को सन्देह न हो, परन्तु देवकी पर सतर्क सृष्टि रखनी है। उसके रजस्वला होने के दिन से उसके गर्भवती होने का पता लगाकार दिन गिनती रहो और मुझे सूचना दिया करो।’ ‘कुछ विश्वस्त दासियाँ को देवकी की सेवा में रख दो। कुछ अपने विश्वास के नपुंसक रक्षक देवकी के अन्त:पुर के रक्षकों में सम्मिलित कर दो।’ कंस ने फिर सावधान किया- ‘कड़ी सृष्टि रखो; किन्तु उन्हें सन्देह मत होन दो। उनको यही लगना चहिये कि अतिशय स्नेह के कारण ही तुम लोग वहाँ प्रतिदिन जाती हो और दास-दासियाँ वहाँ बढा़ रही हो। वसुदेव पर दृष्टि रखने की व्यवस्था मैं कर लूंगा। दोनों रानियों ने अपने स्वामी की प्रशंसा की।
उनकी योजना को स्वीकार कर लिया और इस ओर से कंस को निश्चिन्त रहने को कहा। ‘आप सबने सब कुछ सुन ही लिया है।’ कंस अन्त:पुर से अपने मन्त्रणा-कक्ष में आया तो वहाँ उसके असुर परिकर के लोग उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे- ‘यदुवंशियों पर विश्वास नहीं किया जा सकता। वे कभी भी विद्रोह कर सकते हैं और महाराज भी अभी उनके ही समर्थक हैं।’ ‘युवराज! हमको देर से सम्वाद मिला, अन्यथा हम उन उद्धत लोगों को देख लेते।’ एक ने दांत पीसकर कहा। ‘यह अवसर भी आता ही लगता है।’ कंस ने एक बार सबकी ओर देखा- ‘वसुदेव की सेवा में आज ही कुछ निपुण सेवक भेजने हैं जो अपने अत्यन्त विश्वस्त हों। वसुदेव को सन्देह नहीं होना चाहिये; किन्तु उनकी प्रत्येक गतिविधि पर दृष्टि रखें वे और प्रतिदिन मुझे समाचार दें। ‘सेना में और प्रशासन में भी ऐसे कौन-कौन हैं जो किसी कठिनतम अवसर पर भी विचलित नहीं होंगे और मेरा साथ देंगे।’ कंस ने सबकी ओर एक बार घूम कर दृष्टि फिरायी-मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि महाराज के विरुद्ध भी मेरा साथ देने का अवसर आ सकता है।’ ‘हम केवल आपके सेवक–आपके आज्ञानुवर्ती हैं।’ प्राय: सबने वहाँ स्वीकार किया- ‘मथुरा का सिंहासन आपका है। हम किसी की आज्ञा मानते हैं तो वह आपके कारण।’ ‘मुझे आप सबके सौहार्द पर विश्वास है।’ कंस ने कहा-किन्तु कोई चौंके नहीं, इस प्रकार सेना और शासन में अपने पक्ष के लोगों का पता लगाइये। उनकी सूचना मुझे दीजिये। जो अन्य प्रलोभन से अपने पक्ष हो सकते हों, उनका भी पता लगा लेना है।’ ‘जो महाराज उग्रसेन के प्रति दृढ़ निष्ठावान हैं, उनसे कुछ मत कहिये।’ कंस ने सावधान किया- ‘किन्तु वुसदेव के सहायकों, समर्थकों का पता लगाकर अवश्य मुझे सूचना दे दीजिये।’
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