भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
श्रीरणछोड़राय
वे भागे। भागे जा रहे हैं दोनों। जरासन्ध अट्टहास करके हंसा। चिल्लाकर उसने अपने साथी नरेशों को हाथ उठा कर दिखलाया और आदेश किया सेना को – केवल रथ सेना मेरे साथ इनके पीछे जाएगी। शेष। सेना रुक कर प्रतीक्षा करेगी नए आदेश की। इन समस्त भारवाही वाहनों एवं सेवकों को रोक लो। सब सामग्री अधिकृत कर लो किंतु पशुओं एवं सेवक की पूरी सुविधा का ध्यान रखो। वे अपने मित्र के हैं, विदेश हैं। उन्हें कष्ट नहीं होना चाहिए। जरासन्ध और उसके नरेश साथी रथ सेना साथ लेकर पूरे वेग से पीछे रथों को दौड़ाए आ रहे थे। संपूर्ण तेइस अक्षौहिणी सेना के साथ यही लोग एक नहीं सत्रह बार आ चुके थे और बलराम – श्रीकृष्ण ने इनकी पूरी सेना मार दी थी। इनको भागना पड़ा था पराजित होकर। इनसे ही केवल इनकी रथ सेना से भयभीत होकर भागना – लेकिन आज तो लीलामय को भागने की लीला करनी थी। वे आज रणछोड़राय बन चुके थे और बड़े भाई अनुज का साथ देने को विवश थे। जरासन्ध और उसके साथी उत्साह में थे। उन्हें अपनी पिछली पराजयें भूल गई थीं। उन्हें अपनी शक्ति का ठीक स्मरण भी नहीं था। उनमें यह सोचने की बुद्धि भी नहीं रह गई कि उनके पूरे वेग से दौड़ते रथ इन पैदल भागते दोनों भाइयों के समीप क्यों नहीं पहुँच पाते हैं। बलराम – श्रीकृष्ण भाग रहे हैं, भागते जा रहे हैं। सामने भागते दीखते हैं, किंतु इतनी दूर भी नहीं कि उन पर दौड़ते रथों से भल्ल फेंकना तो दूर शर – सन्धान भी नहीं किया जा सकता। दोनों भागने में बहुत वीर हैं। मगधराज और उसके मित्र हंस रहे हैं। रथों को और वेगों से दौड़ाने के लिए अपने-अपने सारथि से कह रहे हैं। दोनों इस समय निरायुध हैं। विजय का उल्लास मन में भरा है इनके। राम-घनश्याम, गौर-श्याम, नील-पीतवसन, वनमाली भाग रहे हैं। पूरे वेग से दौड़ते जो रहे हैं। लाल-लाल अतिशय कोमल चरणों से भाग रहे हैं। भूमि की ओर देखने का अवकाश नहीं। गड्ढे, टीले, कंकड़-पत्थर, वृक्ष-झाड़ियां यह सब आज देवी योगमाया सम्हालें। ये दोनों भाई इन सबको नहीं देख सकते। इन्हें दौड़ना है, दौड़ते जाना है। शत्रुओं की पूरी रथ सेना पीछे दौड़ी आ रही है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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