भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
कालयवन
सैनिकों की दृष्टि से दोनों शीघ्र दूर निकल गए। श्रीकृष्ण दौड़े जा रहे हैं। कालयवन स्वेद से लथपथ हांफता दौड़ रहा है। उसे लगता है–अब पकड़ा! अब अगले दो पदों में पकड़ा। श्रीकृष्ण उसके हाथ की पहुँच से किञ्चित दूर ही हैं। कालयवन दौड़ता है, पूरे बल से पीछे दौड़ा जा रहा है। अब, अब, अब–लेकिन यह तनिक सी दूरी पूरी नहीं होती। इसी आशा के पीछे तो जीव अनन्तकाल से उस सुख– स्वरूप को पकड़ने दौड़ रहा है। वह कहीं ऐसे पकड़ से आता है? कितनी दूर–किसे देखने का अवकाश था। दूर–बहुत दूर, योजनों दूर तक दोनों दौड़ते चले गए। सामने एक पर्वत दृष्टि पड़ा। कालयवन को लगा, अब यहाँ इस पर ये चढ़े तो वह पकड़ लेगा। श्रीकृष्ण की गति बढ़ गई। मध्य की दूरी कुछ बढ़ गई। एक मोड़ आया पर्वत का और श्रीकृष्ण जैसे अदृश्य हो गए। पर्वत में मोड़ पर श्रीकृष्ण घूमे थे। कालयवन वहाँ आया तो सामने एक गुफा है। आगे मार्ग है ही नहीं। श्रीकृष्ण सामने नहीं हैं। पर्वत पर चढ़ते तो दीखते। कुछ हाथ दूर ही आगे थे। अवश्य वे इस गुफा में चले गए। कालयवन भी वैसे ही दौड़ता गुफा में प्रविष्ट हुआ।[1] श्रीकृष्ण दौड़ते आए थे गुफा में, एक कोई बहुत लम्दे पुरुष गुफा में पड़े सो रहे थे। श्रीकृष्ण ने अपना पटुका झटपट उनके ऊपर फेंका और उन पुरुष के समीप से गुफा के भीतर दौड़ते चले गए। कालयवन दौड़ता आया था। उसके विशाल देह से गुफा द्वार से भीतर आता प्रकाश बहुत कुछ अवरुद्ध हो गया था। उसे अन्धकारपूर्ण गुफा में पीताम्बर ओढ़े कोई सोता दिखलाई पड़ा। वह पुरुष कितना दीर्घाकार है, यह अन्धकार में तत्काल दीख नहीं सकता था। दीखता था केवल चमकता पीताम्बर। यह मुझे इतनी दूर दौड़ाता आया और यहाँ आकर क्षण भर में ऐसे सो गया जैसे इसे सचमुच निद्रा आ गई है। कालयवन को लगा कि वासुदेव अपना पीतपट ओढ़ कर यहाँ पड़ गए हैं। उसे छलने की यह चेष्टा। क्रोधावेश में पूरे बल से उसने पाद–प्रहार किया। चौंक गया कालयवन। इतना दीर्घाकार यह पुरुष कौन? किस पर आघात कर दिया उसने अनजाने में? उसे अधिक सोचने–कुछ कहने का अवकाश नहीं मिला। वह सोया पुरुष पाद–प्रहार से हड़बड़ा कर उठा और क्रोधपूर्वक उसने कालयवन देखा– ऐसा लगा कि कालयवन की पूरी काया कर्पूर से बनी हो उसमें एक साथ चारों ओर अग्नि लगा दी गई हो। सिर से पैर तक एक साथ कालयवन के शरीर से लपटें उठीं। एक चीत्कार तक नहीं निकल सकी। कुल चार–छ: क्षणों में तो वहाँ उस यवनाधिप की थोड़ी सी उज्ज्वल भस्ममात्र रह गई। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ यह मुचुकुन्द गुफा धौलपुर के समीप है। पांच सहस्र वर्ष में उसमें बहुत परिवर्तन हुआ होगा। वहाँ तक मथुरा से श्रीकृष्ण पैदल दौड़ते गए थे।,
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