भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
अपूर्ण स्वयंवर
राजकुमार रुक्मी सेवकों के साथ तत्काल जुट गया आगत नरेशों की व्यवस्था करने में। घायलों की चिकत्सा हुई। मृत मनुष्यों एवं पशुओं का संस्कार ही किया जा सकता था। कोई भी किसी को कुछ कहने की स्थिति में नहीं था। किसी का दोष तो था नहीं। पक्षिराज गरुड़ का वेग ही ऐसा है और देवराज इन्द्र का वज्र भी जिनका कुछ बिगाड़ नहीं सका, उन भगवान विष्णु के अमित पराक्रम वाहन के स्वच्छंद संञ्चारण को कोई रोक कैसे सकता है। अपने अग्रज तथा यादव–महारथियों के साथ श्रीकृष्ण चंद्र आ रहे हैं। गरुड़ उनके साथ हो गये हैं। शीघ्र ही यह संवाद सबको मिल गया। इस समाचार को पाकर महाराज भीष्मक अपने कुल पुरोहित तथा नगर के वृद्धों–विद्वानों को लेकर स्वागत करने निकल पड़े। आगे जाकर स्वागत किया उन्होंने। अर्ध्य देकर सबका सम्मान किया। नगर के पार्श्व निर्मल जलाशय के समीप श्रीकृष्ण चंद्र अपने पूरे समाज के साथ उतरे। श्रीकृष्ण आ गए। इस समाचार ने राजाओं के समूह में दूसरी प्रतिक्रिया उत्पन्न की। सब मगधराज जरासन्ध के शिविर में एकत्र हुए। उन्हें अब परस्पर मंत्रणा करके किसी एक निर्णय पर आना था, क्योंकि अब स्वयंवर सभा में स्वतंत्र बैठ कर कन्या पाने की आशा क्षीण हो चुकी थी। इस आशा के नष्ट होने से आंतरिक स्पर्धा समाप्त हो गई थी। ये दोनों वसुदेव पुत्र अत्यंत पराक्रमी हैं और यहाँ कन्या हरण करने ही आए हैं। जरासन्ध ने ही प्रारंभ किया–गोमन्तक पर्वत वाले युद्ध को आप सबने देखा ही है, अत: अब व्यर्थ अपने बल का गर्व करना कोई बुद्धिमानी नहीं है। उस युद्ध में दोनों भाई मात्र थे और पैदल थे। अब इनके साथ अमित पराक्रम गरुड़ हैं। यदुवंश की सब शाखाओं के महारथी भी साथ हैं। यदि यहाँ युद्ध होता है तो कैसा दारुण युद्ध करेंगे, इसे आप समझ लें। इन्हें कन्या भी वरण करे तो ये उसे बलपूर्वक ले जाएंगे। मैं इनका प्रबल विरोधी हूं, किंतु स्पष्ट सत्य को मैं अस्वीकार नहीं करता। मैं मानता हूँ कि ये असुर–विनाशक विष्णु ही हैं। गरुड़ त्रिभुवन में दूसरे किसी के सम्मुख विनम्र नही बनते। मगधराज महामनस्वी हैं। अपने शत्रु की शक्ति और गुण को स्वीकार करना इनकी महत्ता है। इस समय इन्होंने श्रीकृष्ण के संबंध में जो कुछ कहा है, सर्वथा सत्य है। सुनीथ ने जरासन्ध का समर्थन किया। वे मेरे मामा के पुत्र हैं। यह सत्य है कि मेरी उनसे पटती नहीं, पट भी नहीं सकती, किंतु मुझे अब तक उनमें दोष नहीं दीखता। दन्तवक्र ने उठकर अपनी बात कही–आप दोनों उनकी शक्ति का जो वर्णन करते हैं–सत्य है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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