भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
जरासन्ध का आक्रमण
मगधराज जरासन्ध भी चौंक गया। उसने भी समझ लिया कि उसके सैनिकों को तत्काल सम्हालने–उनके भय को दूर करने की आवश्यकता है। उसने अपना रथ लाकर राम–कृष्ण के रथों के सम्मुख खड़ा कर दिया। कृष्ण! तू तो पुरुषाधाम है। अपने सम्वन्धियों का हत्यारा और मृत शत्रु के शव पर शूरता दिखलाने वाला। मगधराज कठोर स्वर में बोला– फिर भी अभी तू बालक है, अत: बच्चे से लड़ना मेरे लिए लज्जा की बात है। मूर्ख! बान्धवघाती! जा! सुरक्षित कहीं निकल जा। मैंने तुझे छोड़ दिया। मुझे मुख मत दिखलाना। राम! यदि तुममे अपनी शक्ति पर विश्वास है तो धैर्यपूर्वक मुझसे युद्ध करो। जरासन्ध ने श्री बलराम की ओर मुख किया–या तो मुझे मारो या मेरे बाण तुम्हारे शरीर को छिन्न-भिन्न करके तुम्हें स्वर्ग भेज देंगे। तुम यहाँ से अब सुरक्षित नहीं जा सकते। राजन! शूर पुरुष वकवाद नहीं किया करते। श्रीकृष्ण चंद्र का सहास्य मेघ गम्भीर स्वर पूरी सेना में गूँज गया–तुम आतुर हो! मृत्यु तुम्हारे मस्तक पर आ चुकी है। अत: तुम्हारी बकवाद पर हम ध्यान नहीं देते। क्रोध से काँपता चिल्लाया जरासन्ध–इन दोनों दुर्विनीतों को घेर कर मार डालो। मथुरा के भवनों के ऊपर चढ़े स्त्री और पुरुष नगर द्वार–दक्षिण द्वार के समीप ही दृष्टि लगाए खड़े थे। सहसा रथों, हाथियों, अश्वों की शत्रु सेना दौड़ पड़ी। भयानक घटा के समान उमड़ पड़ी। गरुड़ ध्वज एवं ताल ध्वजत, दोनों रथ उस घेरे में पता नहीं कहाँ अदृश्य हो गए। हाय! मथुरा के लोगों के मुख से हाय भी ठीक से नहीं निकली। लगा कि वे मूर्च्छित होकर गिर पड़ेंगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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