भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
दशावतार
भगवान श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। मानव के आदेशों को, कर्तव्य-के विभिन्न क्षेत्रों की मर्यादा को प्रत्यक्ष उपस्थित करने के लिए यह अवतार हुआ। जो लोकमर्यादा की स्थापना करने चलेगा, उसे रावण-लोकों को रुलाने वालोंं को सहायकों के साथ मार ही देना पड़ेगा। भगवान श्रीराम के चरित के आध्यात्मिक पक्ष पर ऋषियों ने बहुत कुछ कहा-लिखा है। श्रीकृष्ण तो पूर्णावतार- लीलापुरुषोत्तम हैं। जान-बूझकर ‘थे’ नहीं कहा जा रहा। भगवान कभी भूत पुरुष हुआ नहीं करते। भगवान् वासुदेव ने भूभार तो दूर ही किया, ऐसी लीलाएं भी की जिनका स्मरण-चिन्तन करके युग-युग तक मानव मन उनके श्रीचरणों में लगा रहेगा। उनकी लीलाओं का ध्यान परम कल्याणदायी है। वे दयाधाम...।
मेघनाद त्रेता मे जब रणांगण छोड़कर यज्ञ करने बैठ गया तो मर्यादा पुरुषोत्तम ने कपियों को उसका यज्ञ भंग करने की आज्ञा दी। वह अभिचार यज्ञ न करके यदि सात्त्विक यज्ञ करता होता तो उसे भ्रान्त करने को कोई ऋषि भेजना पड़ता। ऐसा ही प्रयोजन बुद्धावतार का होना है और कल्कि को तो केवल कण्टक वन काटने जैसा कार्य करना है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पुराणोंं में वर्णित इस बुद्धावतार का कोई विशेष परिचय मिलता नही। भगवान गौतम बुद्ध से इसका सम्बंध नही जान पड़ता। महात्मा जयदेव ने तथागत को बुद्ध अवतार माना तो अवतार का हेतु भी परिवर्तित कर दिया है।
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