भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
कुब्जा की प्रतीक्षा
उनके आने के लिए भी क्या कोई समय अनुपयुक्त हुआ करता है? वे कालिंदी तट से नित्यकृत करके इधर होते निकल सकते है। कुब्जा को तो सब समय उनके आने के उपयुक्त लगता है। उन्हे मध्याह्न मेंं अक्सर मिलता होगा। और कुसुम तो म्लान हो गये। उन्हेंं शीघ्र ही परिवर्तित कर दिया जाना चाहिये। स्वेद ने अंगराग मलिन कर दिया। पुन: श्रृंगार करना चाहिए मुझे। वे अभी आ रहे होंगे। मध्याह्न में भोजन करके विश्राम किया होगा। अब इस तीसरे प्रहर आवेंगे। सायंकाल यमुना तट जाते समय आवेंगे। यमुना तट से लौटते आवें किञ्चित् अंधकार होने पर। छि:! वे दिन में कैसे आते। गुरुजनों का संकोच होता होगा, रात्रि में–सबके सो जाने पर आवेंगे। कुब्जा को न दिन में चैन है, न रात्रि में। वे भुवन भूषण अब आ रहे होंगे– यही उनके आने का उपयुक्त समय है। उसे प्रहर बीतने से पूर्व ही शैय्या के सुमन और अपना श्रृंगार मलिन लगने लगता है। इन्हें तत्काल बदला जाना चाहिए। कल नहीं आ सके। किसी कार्य में व्यस्त रहे होंगे। आज अब आते होंगे। वे आवेंगे ही– उन्होंने स्वयं आने को कहा है। निराशा स्पर्श ही नहीं करती है कुब्जा के प्राणों को। गृह, कक्ष, शैय्या बार बार सज्जित होती है। पूजा के उपकरण परिवर्तित होते हैं। वह पता नहीं, कितनी बार दर्पण के सम्मुख आकर अपने को देखती है और श्रृंगार सुधारती संवारती है। वे आते होंगे–अब आ ही रहे होंगे। एक अद्भुत उन्माद हो गया है कुब्जा को। भोजन करना पड़ता है– न करे तो उसका रूप क्या उनको प्रसन्न करने योग्य रह सकेगा। स्नान तो आवश्यक है नूतन श्रृंगार धारण करने के लिए। भोजन या स्नान के लिए लगने से पूर्व दासी को अनेक बार सावधान रहने को कह कर द्वार पर नियुक्त करती है और फिर भी दो–चार ग्रास मुख में डाल कर बीच में ही हाथ धो लेती है– शीघ्रता करो! स्नान पूरा हुए बिना ही श्रृंगार कर देने का आग्रह करने लगती है। कुसुम बहुत शीघ्र मुरझा जाते हैं। किसलय म्लान होते हैं। दिन आता है और चला जाता है। रात्रि पर रात्रि बीतती जा रही है, किंतु कुब्जा की प्रतीक्षा थकती नहीं है। सखियाँ खीझती हैं, दासियाँ दुखी होती हैं, किंतु उसे कहाँ शरीर की सुधि है। उसे शरीर उनके अर्पण के योग्य सुसज्ज रखने की ही चिंता है। उसे प्रतिक्षण लगता है–वे आ रहे होंगे। अब आ ही रहे होंगे। श्रीकृष्ण चंद्र का उपनयन हो गया। वे गुरु गृह चले गए। दासी ने समाचार देकर समझा था कि कुछ काल को यह प्रतीक्षा का उन्माद शांत हो जाएगा। उन्होंने इस दासी पर अनुग्रह करने के लिए अच्छा बहाना बनाया। वे अब बिना किसी के जाने चाहे जब आ सकते हैं। कुब्जा पर तो प्रत्येक स्थिति एक ही प्रभाव डालती है कि उनके आने का उपयुक्त अवसर है। वे आ रहे होंगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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