भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
शिक्षण-प्रशिक्षण
मध्याहोत्तर क्षत्रिय-कुमारों को धनुर्वेद तथा अन्य वेदांगों का, उपवेदों का प्रशिक्षण दिया जाता है। कृष्ण ने इस बार स्वयं नहीं कहा। गुरुदेव ने ही कहा और राम से कहा– ‘वत्स! कल के अध्यापन का जो स्मरण हो, सुना दो!’ ‘राम मूर्तिमान धनुर्वेद हैं क्या?’ मूल कारिकायें सुना दीं चारों उपवेदों की। लेकिन प्रयोग के लिए राम को आश्रम का लघु धनुष रुचा नहीं। महाधनु भी दोनों भाइयों को किसी प्रकार काम चलाने योग्य लगा। ‘इनकी यह व्याख्या मुझे लगती है।’ कभी राम और कभी कृष्ण व्याख्या करने लगते हैं सूत्रों की, आरण्यक-अपनिषदों की या धर्मसूत्रों की। अर्थवेद, स्थापत्यवेद की भी इनकी अपनी व्याख्या है। इतनी सुस्पष्ट, साँगपूर्ण व्याख्या तो महर्षि ने कभी सुनी या सोची नहीं। छात्र अब परस्पर कहने लगे हैं– ‘ये दोनों भाई ज्ञान के ही दो रूप लगते हैं।’ गान्धर्ववेद का समय सांयकाल है। यही कलाओं के प्रशिक्षण का काल है। विद्यारम्भ के प्रथम दिवस महर्षि ने कृष्णचन्द्र से पूछा था– ‘वत्स! तुम्हें वाद्य कौन-सा प्रिय है?’ श्रीकृष्ण मौन रह गये थे दो क्षण। राम अनुज का मुख देखने लगे। वे सोचते थे–वह झटपट कहेगा– ‘वंशी’ ; किन्तु नहीं–वंशी तो रह गयी व्रज में। व्रज के वे भावप्राण न हों, कृष्ण वंशी कैसे स्पर्श करेंगे। उन्होंने धीरे से कह दिया– ‘तन्त्री।’ दूसरे दिन सांयकाल श्रीकृष्ण ने तन्त्री उठायी। कल इसके सिद्धान्त सुना दिये थे महर्षि ने और आज अब श्रीकृष्ण के करों में वीणा पहुँची–देवी वीणापाणि भी प्रशिक्षण लेने आ बैठी होतीं तो प्रसन्न हो जातीं। समय, स्थान, शरीर तक विस्मृत हो गया सबको और स्वर ने जो-जो चमत्कार प्रकट किये, कुछ सीमा है उन आश्चर्यों की। लेकिन महर्षि बहुत सावधान, बहुत कठोर हैं अपने नियमों में। उन्होंने वीणा-वादन रुकने पर सावधान होते ही स्नेह स्निग्ध स्वर में कह दिया– ‘वत्स! ब्रह्मचारी के लिए तो संगीत-नृत्यप्रियता विलासिता है।’ ‘स्मरण रखूँगा गुरुदेव।’ श्रीकृष्ण ने चरण पकड़ लिये और तब से फिर यह मधुर तन्मयता नहीं आयी। महर्षि प्रत्येक सांयकाल एक कला के सूत्र बोलने लगे और राम-श्याम उनकी व्याख्या कर देते हैं। बहुत कम प्रयोग प्रस्तुत करते हैं किसी कला का। केवल तब प्रस्तुत करते हैं जब गुरुदेव किसी सहाध्यायी को समझा देने के लिए ऐसा करने की आज्ञा देते हैं। ‘अभी ये कल आश्रम में आये हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज