भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
माता रोहिणी आयीं
‘श्याम का स्वभाव विचित्र है। उसकी ठीक रुचि का भोजन न हो, कहेगा कुछ नहीं; किन्तु दो-चार ग्रास मुख में डालकर उठ जायेगा।’ माता का अनुभव है– ‘कन्हाई तो गन्ध से पहचान लेता है कि नवनीत किसके हाथ से निकाला गया। भोजन किसने बनाया। अंगराग किसने प्रस्तुत किया। वह प्रस्तुत करने वाले कर को प्रिय या अप्रिय मान लेता है और तब उसे पदार्थ प्रिय या अप्रिय लगने लगता है। मथुरा में किसे पता है इन सब बातों का।’ माता रोहिणी मथुरा आयीं। वे कहती हैं– ‘बल का कुछ नहीं। वह छोटे भाई के साथ लगा रहेगा। भूख लगेगी तो भरपेट खा लेगा। नींद आवेगी तो कहीं भी सो जायेगा। उसे कभी कहीं असुविधा नहीं हो सकती। उसका ध्यान रखने को उसका अकेला छोटा भाई ही बहुत है। उसे बिना प्रयोजन भी धुन चढ़ी रहती है– ‘यह दादा लेगा! यह दादा के लिए! अभी दादा को यह चाहिये।’ ‘सबसे कठिन है कृष्ण का ध्यान रखना। वह मनाने पुचकारने पर तो कहीं भोजन करने बैठेगा और फिर बीच में ही उठ भागेगा। उसे तो बहलाकर, फुसलाकर भोजन, नवनीत आदि खिलाना पड़ता है। सुलाना पड़ता है। उसके विश्राम का ध्यान रखना पड़ता है।’ ‘देवकी को क्या पता कि कृष्ण को कब बोलने से रोक देना चाहिये। कैसे रोकना चाहिये।’ माता रोहिणी का कहना है– ‘कृष्ण बहुत बातें बनाता है। उसकी बात कोई सुनने वाला चाहिये। वह खाते-खाते रुक जायेगा या सोते-सोते उठ बैठेगा और कुछ सुनाने लगेगा। उसे तो रोकना–फुसलाते रहना पड़ता है।’ माता रोहिणी पति की आज्ञा से–पति के बुलाने पर मथुरा आती हैं; किन्तु आयी हैं अपने कृष्ण के लिए। वे अब भी अत्यन्त उदार हो जाती हैं। उनकी चलती तो वे व्रज से कभी आने का नाम भी न लेतीं। आज भी वे मन से नन्दभवन में ही रहती हैं। मथुरा में मानो उनके लिए कहीं कोई आकर्षण ही नहीं रह गया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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