भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
रंगशाला में
‘ये–यही तो श्रुतिप्रतिपाद्य परमतत्त्व हैं।’ महर्षि गर्गाचार्य और उनके शिष्यों को, दूसरे ऋषियों को भी कोई सन्देह नहीं है। ‘समाधि में–अन्तर की सम्पूर्ण एकाग्रता में जो चिन्मय पराज्योति प्रकाशित होती है, वही तो यह इन्दीवर सुन्दर नेत्रों के सम्मुख आ खड़ा हुआ है।’ परमानन्द निमग्न, सर्वथा निस्पन्द, निर्निमेष दर्शन कर रहा है यह वर्ग। ‘भगवान वासुदेव–अपने आराध्य परमदेवता भगवान नारायण आ गये।’ वृष्णिवंशियों को भी कोई सन्देह नहीं है। ‘वही नीलवर्ण, वही विशाल वक्ष श्रीवत्साकिंत, वही कौस्तुभ कण्ठ में और उन्हें तो श्रीकृष्ण द्विभुज नहीं दीख रहे हैं। क्या हुआ कि एक कर में गदा के स्थान पर ये आज गजदन्त उठाये हैं। ये शंख, चक्र, पदम–ये चतुर्भुज श्रीहरि।’ सब ने अंजलि बाँध रखी है। सब साश्रुनेत्र हैं। सबके ओष्ठ अस्पष्ट स्तुति में हिल रहे हैं। कंस से लेकर सबकी–सज्जन-असज्जन, साधु-असाधु, रागी-द्वेषी, स्त्री-पुरुष सबकी दृष्टि लगी है–एकटक लगी है दोनों भाइयों पर। कहीं कोई तनिक-सा भी शब्द नहीं। कोई हिल नहीं रहा। ये दोनों भाई भी और गोपकुमार भी चारों ओर देख रहे हैं। पूरी रंगशाला को देख रहे हैं। ‘ये बड़े श्रीरोहिणीनन्दन संकर्षण और छोटे श्रीकृष्ण नवघन सुन्दर!’ स्त्रियों में, नागरिकों में समीप बैठे लोगों से मन्द स्वरों में चर्चा चल पड़ी– ‘वसुदेव जी ने इन्हें गोकुल पहुँचा दिया था मथुरा से। ये तो साक्षात नारायण हैं। पिता न पहुँचा आये होते तो उसी दिन मार देते कंस को; किन्तु पिता ने शिशु माना तो शैशव की लीला करने लगे।’ ‘गोकुल में इन्होंने सूतिका-गृह से निकलते ही पूतना को मार दिया। वह अदृश्य रहने वाला राक्षस उत्कच गया गोकुल और तब से सदा को अदृश्य हो गया। तृणावर्त भी इनके पास मृत्यु का मारा ही पहुँचा था।’ लोगों की चर्चा फुसफुसाहट के स्वरों में ही थी–नन्दराय इन्हें लेकर गोकुल से वृन्दावन चले गये। वहाँ वृत्सासुर, बकासुर, व्योमासुर, प्रलम्ब, धेनुक, अरिष्ट, अघासुर, केशी आदि को कंस भेजता गया और किन्हीं को छोटे और किन्हीं को बड़े कुमार परलोक भेजते गये।’ ‘असुरों की अच्छी चलायी! अरे, सुरराज इन्द्र का भी गर्वमर्दन कर दिया इन्होंने गोवर्धन को सात दिन हाथ पर उठाये रखकर।’ सस्नेह देखते किसी ने कहा– ‘कालिय जैसा महानाग इनके पदों से कुचला जाकर यमुना त्यागकर भाग गया।’ ‘सुनते हैं कि युदवंश को ये विश्वप्रसिद्ध कर देंगे।’ उमंग में यादव वृद्ध कह रहे थे– ‘यश, ऐश्वर्य, लक्ष्मी अब यादवों के चरण चूमेगी इनके अनुग्रह से। यादवों के ये सौभाग्य सूर्य प्रकट हो गये हैं।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज