भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
जय जननायक
‘मथुरा में अब कोई कंगाल नहीं रहेगा। ज्येष्ठा देवी कोई दूसरा स्थान ढूंढ़ने आज ही चली गयीं।’ वैश्य वृद्ध भी ऐसी ही चर्चा कर रहे हैं– ‘गुणक और सुदामा दोनों के घरों में पादुकायें तक स्वर्ण की हो गयी हैं। स्वर्ण से भर गये हैं उनके गृह। भगवान वासुदेव हमारे अधीश्वर होंगे तो क्या प्रार्थना करने पर हमारे गृह अपने श्रीचरणों से पवित्र करने नहीं पधारेंगे।’ ‘उनके आने की भी आवश्यकता कहाँ है?’ लोग श्रद्धा से पूर्ण हैं– ‘गुणक के गृह कहाँ गये थे वे। केवल उनकी ओर दृष्टि उठाकर देख लिया था उन्होंने। ‘उन्होंने स्पर्श क्या किया, कुब्जा पर रूप का अम्बार उतर आया।’ स्त्रियों में कुब्जा की ही चर्चा अधिक है। ‘वह दासी–ओह, कदाचित वे दासी स्वीकार कर लेते अपनी।’ असंख्य अन्त:करण आकुल हो रहे हैं आज। ‘वे भैया हैं दोनों हमारे।’ यादव-कन्यायें उमंग में हैं– ‘हमें बहिन कहेंगे। कल उन्हें मथुरा का अधीश्वर तो होने दो।’ ‘हमारे देवर लगते हैं।’ कुलवधुओं में उमंग कम नहीं है। ‘भाभी! तुम अभी से ऐसी होने लगी हो।’ कन्यायें छेड़ने लगी हैं– ‘हम भैया से कह देंगी।’ ‘कह दो कि वे और विवाह कर लें।’ कुलवधुओं में यहाँ एकान्त में परिहास चल रहा है– ‘हमारे दोनों देवर सकुशल रहें, बस।’ ‘सकुशल रहें गौर-श्याम।’ वृद्धाओं में अपार वात्सल्य उमड़ रहा है। उनको दोनों भाई बहुत छोटे लगते हैं। इतने छोटे कि अंक में लेकर दुग्धपान कराने को हृदय मचल रहा है। बड़ी-बूढ़ियों के भी अंचल आज टपकते दूध से भीग रहे हैं। ‘धन्य देवकी बहू।’ वृद्धाओं में देवकी जी की, रोहिणी जी की प्रशंसा भी चल रही है। ‘कितनी तपस्या की उन्होंने। कितना कष्ट उठाया वर्षों तक।’ ‘इस नाते ये कभी हमारे अंक में भी आ बैठेंगे।’ वृद्धाओं में वात्सल्य उमड़ रहा है। वाणी आशीर्वाद देते थकती नहीं है। ‘भगवान वासुदेव! हमारे स्वामी! हमारे प्रतिपाल!’ मथुरा के स्त्री-पुरुष, बालक-युवा-वृद्ध उन दोनों भाइयों की ही चर्चा में लगे हैं। उनके रूप, शील, विनय, पराक्रम की ही चर्चा है सर्वत्र! मथुरा के जन-नायक हो गये वे आज सन्ध्याकाल ही। सबका–सब सात्विक जनों का हृदय, सबकी प्रीति सम्पादित कर ली श्याम-बलराम ने कुछ घड़ी के नगर-भ्रमण में। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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